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मेवाड़ राज्य का इतिहास

मेवाड़ राज्य का इतिहास

मेवाड़ राज्य का इतिहास

मेवाड़ राज्य का इतिहास(History of Mewar kingdom read here)

 

मेवाड़ को वर्तमान में उदयपुर कहा जाता है।
संसार के अन्य राजवंशो में उदयवंश का राजवंश अधिक प्राचीन है।
सबसे अधिक समय एक ही प्रदेश पर राज्य करने वाला मेवाड़ राजवंश है।
‘जो दृढ राखे धर्म को, तिहिं राखे करतार’ उदयपुर राज्य के राज्य  चिन्ह में अंकित है।
मेवाड़ के इतिहास की जानकारी गुहिल (गुहा द्वितीय) के काल से प्रारम्भ होती है। 566 ई. के आस-पास गुहा द्वितीय ने गुहिल वंश की नींव डाली।
बप्पा रावल मेवाड़ का प्रतापी राजा हुआ। जिसका मूल नाम काल भोज था।
अल्लट के समय मेवाड़ की बड़ी उन्नति हुई।
अल्लट ने ही मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया।
रणसिंह के पुत्र क्षेमसिंह ने मेवाड़ की रावल शाखा का जन्म दिया व राइप (रण सिंह के पुत्र) व सिसोदा ग्राम की स्थापना कर राणा शाखा की नींव डाली।
जो सिसोदे में रहने के कारण सिसोदिया कहलाये।

⇒    रावल रतन सिंह 

     रावल रतन सिंह के काल की प्रमुख घटना चित्तौड़ का प्रथम शाका थी। (1303 ई.)
1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दुर्ग पर आक्रमण किया गया व चित्तौड़ का किला फतह किया। पदमावत के अनुसार युद्ध का प्रमुख कारण अलाउद्दीन खिलजी रतन सिंह की पत्नि पद्यमनी को पाने की               लालसा थी।
रतन सिंह की मृत्यु के बाद पद्यमनी ने जौहर कर लिया।
इस युद्ध में गौरा व बादल दो वीर युवकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
औरंगजेब ने चित्तौड़गढ़ का नाम अपने पुत्र खिज्रखां के नाम पर खिज्राबाद रखा।
चित्तोड़गढ़ के प्रथम शाक्य में प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन खिलजी का साथ दिय।

⇒ महाराणा हमीर 

     महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित रसिक प्रिया व कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति हमीर को विषम घाटी पंचानन कहा है।

⇒  महाराणा लाखा ( 1382 – 1421 ई० )

महाराणा लाखा के काल में एक बंजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया व इनके ही काल में जावर गांव में चाँदी की खान निकल आई थी।

⇒  महाराणा  मोकल ( 1421 – 1433 ई० )

महाराणा मोकल महाराणा लाखा का छोटा पुत्र जो राव चूड़ा की भीष्म प्रतिज्ञा (गद्दी पर न बैठने की) के बाद गद्दी पर बैठा।

⇒   महाराणा कुम्भा

     हिन्दू सुरत्राण व अभिनव भरताचार्य के नाम से प्रसिद्ध हैं।
सारंगपुर का युद्ध (1434 ई.) माण्डू शासक महमूद व कुम्भा के बीच लड़ा गया जिसमें कुम्भा विजयी रहे।
इस विजय के उपलक्ष्य में राणा कुम्भा ने चित्तौड़ के किले में विजय स्तम्भ (कीर्ति स्तम्भ) बनवाया।
इसे भारतीय की मूर्ति कला का विश्वकोष कहा जाता है।
 कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के रचियता कवि अत्रि थे। जिनके निधन के बाद इस कार्य को इनके पुत्र कवि महेश ने पूरा किया।
दुर्ग के भीतर ‘कटार गढ़’ कुम्भा के रहने का स्थान।
कुम्भा के समय में ही रणकपुर के जैन मंदिरों का निर्माण 1439 धरनक के द्वारा करवाया गया।
कुम्भा ने संगीत राज, संगीत मीमांसा, व गीत गोविन्द पर रसिक प्रिय नाम की टीका लिखी।
चम्पानेर की संधिः  –  मालवा के सुलतान महमूद खिलजी और गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन के बीच हुई। जिसका उद्देश्य कुम्भा को पराजित कर उसके साम्राज्य का आपस में बांटना था। परन्तु वे कुम्भा को नहीं हरा सके।

⇒  महाराणा सांगा

      महाराणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह था महाराणा सांगा महाराणा कुम्भा के पौत्र व रायमल के पुत्र थे
इनका जन्म 1482 में वमेवाड़ राज्य का इतिहास में हुआ।
सांगा के आश्रयदाता कर्मचन्द पंवार थे।
राणा सांगा के समय दिल्ली में सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूद बेगड़ा, मालवा में नासिरशाह थे। जिन्हें महाराणा के आगे झुकना पड़ा
गागरोन युद्ध 1519 ई. जो कि पहली बार मेवाड़ के रक्षात्मक युद्ध के स्थान पर अर्कामक युद्ध था जिसमें महाराणा सांगा विजयी रहे।
 खातौली का युद्ध 1517 ई. इसमें इब्राहिम लोदी की पराजय हुई।
बांडी (धौलपुर) का युद्ध 1519 ई. – इसमें राणा सांगा विजयी रहे।


 खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई.

– यह युद्ध मुगल वंश के संस्थापक बाबर व महाराणा सांगा के बीच लड़ा गया। इस युद्ध से पहले सांगा ने 1527 ई. में ही बयाना दुर्ग पर कब्जा कर लिया था।
खानवा का मैदान आधुनिक भरतपुर जिले की रूपवास तहसील में है खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा की तरफ से लड़ने वाला एकमात्र  मुस्लिम सेनापति  हसन खां मेवाती था |
 सांगा अन्तिम हिन्दू राजा था जिसका सेनापतित्व में सब राजपूत जातियां विदेशियों को भारत से बाहर निकालने के लिए सम्मिलित हुई।
इस युद्ध में झाला अज्जा ने राज चिन्ह धारण कर महाराणा सांगा की जान बचाई।
मुर्छित महाराणा को बसवा गांव (जयपुर राज्य) ले जाया गया।
बाबर के विजय रहने का कारण उसकी ‘तुलुगुमा पद्धति’ व बाबर का तोपखाना था।
 30 जनवरी 1528 ई. को कालपी नामक स्थान पर सांगा की मृत्यु हो गई व मांडलगढ़ में इनकी समाधि बनाई गई।
सांगा को अंतिम भारतीय हिन्दू सम्राट के रूप में स्मरण किया जाता है।
महारानी कर्मवती द्वारा किया गया जौहर चित्तौड़ का दूसरा शाका कहलाता है।
स्वामी भगत पन्नाधाय द्वारा अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह  की रक्षा की व 1599 ई. को उदयसिंह ने उदयपुर की नींव डाली।
उदयसिंह के शासन काल में ही 1568 को चित्तौड़ का तृतीय शाका हुआ।

⇒  महाराणा प्रताप

     मेवाड़ के तीन महाराणा उदयसिंह, प्रताप सिंह और अमरसिंह अकबर के समकालीन थे।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ में हुआ।
इनका राज्यभिषेक गोगुन्दा में हुआ परन्तु इनका विधिवत राज्यभिषेक कुम्भलगढ़ में किया गया।
राणा प्रताप को कीका के उपनाम से भी जाना जाता है।
अकबर ने प्रताप से समझौते के लिए चार दूत भेजे जिनका क्रम निम्न है –  जलाल खाँ-मानसिंह-भगवन्तदास-टोडरमल


⇒  हल्दीघाटी का युद्ध


अकबर की तरफ से सेना का नेतृत्व मानसिंह ने किया।
हल्दीघाटी राजसमंद जिले में गोगुन्दा और खमनौर के बीच एक संकरा स्थान है। मिट्टी के हल्दी के समान पीली होने के कारण इसका नाम हल्दी घाटी पड़ा।
हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई. को हुआ।
प्रताप की सेना में आगे के भाग का नेतृत्व हकीम खान सुर  पठान ने किया।
इस युद्ध में प्रमुख इतिहासकार  अलबदायूनी भी उपस्थित था।
झाला बींदा ने राणा प्रताप का राजमुकुट धारण कर उनके प्राणों की रक्षा की।
अक्टूबर 1576 में राणा प्रताप ने मेवाड़ की चढ़ाई की व उदयपुर को जीता इसका नाम मुहम्मदाबाद रखा।
भामाशाह ने चूलिया ग्राम में प्रताप को धन भेंट कर आर्थिक सहायता की। भामाशाह को मेवाड़ के रक्षक के रूप में स्मरण किया जाता है।


⇒  दिवेर का युद्ध 1582 ई.


दिवेर वर्तमान में राजसमंद जिले में स्थित है। राणा प्रताप ने मेवाड़ की भूमि को मुक्त कराने का अभियान दिवेर से प्रारम्भ किया था।
दिवेर की जीत के बाद प्रताप ने चावण्ड में अपना निवास स्थान बनाया।
1585 को प्रताप ने चावण्ड को अपनी नई राजधानी बनाया व 19 जनवरी 1597 को चावण्ड  में ही राणा प्रताप का देहान्त हो गया। यहां से थोड़ी दूर बांडोली गांव में राणा प्रताप की छतरी बनी हुई है।
कर्नल टोड ने हल्दी घाटी को ‘मेवाड़ की थर्मोपली’ और दिवेर को मेवाड़ का मेराथन कहा है।
अब्बुल फजल ने हल्दी घाटी के युद्ध को ‘खमनौर का युद्ध’ व बदायूंनी ने ‘गोगुन्दा का युद्ध’ कहा है।

⇒  महाराणा अमर सिंह

      इनका राज्यभिषेक 1597 ई. चावण्ड में हुआ।
5 फरवरी 1615 ई. को शहजादा खुर्रम से संधि की ।

⇒   राजसिंह

 जगन्नाथ व राजप्रशिस्त की रचना कृष्ण भट्ट ने की।
महाराणा राज सिंह ने औरंगजेब के 1679 में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाने व मूर्तियां तुड़वाने का विरोध किया।
औरंगजेब का विरोध करते हुए राजसिंह ने 1660 को चारूमति से विवाह किया व कांकरोली में द्वारिकाधीश की मूर्ति तथा सिहाड़ (नाथद्वारा) में श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित कर धर्मनिष्ठा का परिचय दिया।
महाराणा राजसिंह ने गोमती नदी के पानी को रोक कर राजसमंद झील बनाई। इस झील की 9 चैकी पाल पर राज प्रशस्ति महाकाव्य खुदा हुआ है। जो भारत में सबसे बड़ा शिलालेख है। इसकी  रचना
रणछोड भट्ट ने की।
⇒  अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
17 जुलाई 1734 को महाराजा जगत सिंह ने मराठों के विरूद्ध राजस्थान के राजाओं को संगठित करने के लिए हुरड़ा सम्मेलन आयोजित किया।
कृष्णा कुमारी विवाद:- भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी के विवाह को लेकर जयपुर व जोधपुर में संघर्ष हुआ। जिसे अमीर खाँ पिण्डारी व अजीत सिंह चूड़ावत की सलाह पर 1810 में कृष्णा कुमारी को जहर देकर इस विवाद को समाप्त कर दिया गया।

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धन्यवाद 

सोर्स – Mahaveer Dawara’s जी के नोट्स , above all Content is related to Mewar kingdom.

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