नमस्कार प्रिय साथियों आज का जो हमारा विषय है वह है राजस्थान हस्तकला राजस्थान की हस्तकला में से लगभग 2 से 3 प्रशन इन नोट्स ओं में से आते रहते हैं| इसलिए हमने यह प्रयास किया है कि राजस्थान हस्तकला विषय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न नोट्स आपसे शेयर करें| तो इस पोस्ट में आप अध्ययन करेंगे राजस्थान हस्तकला से संबंधित महत्वपूर्ण पॉइंट्स , साथियों अगर आपको हमारा प्रयास अच्छा लगे तो ज्यादा से ज्यादा शेयर करें| हमारा उद्देश्य है उच्च क्वालिटी कंटेंट को जरूरतमंद लोगों तक बिना किसी अतिरिक्त व्यय के पहुंचाना|
रंगाई तथा छपाई
- कपड़ों पर हाथ से छपाई ब्लॉक प्रिटिंग कहलाती है।
- राजस्थान में बाड़मेर में खत्री जाति के लोग परम्परागत रूप से छपाई का कार्य करते हैं। छपाई का कार्य करने वाले छींपे कहलाते हैं। सांगानेर, बगरू (जयपुर) तथा अकोला (चित्तौड़) छपाई के लिए प्रसिद्ध केन्द्र है।
- सांगानेर का सांगानेरी प्रिंट, बाड़मेर का अजरख प्रिंट व मलीर प्रिंट, चित्तौड़ की जाजम छपाई तथा अकोला का दाबू प्रिंट विश्व प्रसिद्ध है।
- राजस्थान का बंधेज तथा मोठडा अद्वितीय है।
- पोमचा तथा लहरिया प्रसिद्ध ओढनिया है। पोमचा पीले रंग का होता है। जो पीहर पक्ष द्वारा जच्चा स्त्री को भेजा जाता है जबकि लहरिया श्रावण में विशेषकर तीज पर पहने जाने वाली ओढ़नी| जरी का काम सवाई जयसिंह द्वारा सूरत से लाया गया|
- उदयपुर तथा जयपुर में लाल रंग की ओढनियों पर गोंद मिश्रित मिट्टी की छपाई की जाती है। इसके बाद इस पर लकड़ी के छापों द्वारा सोने चांदी की छपाई की जाती है। जिसे रबड़ी की छपाई कहते हैं।
- कपड़ों के टुकड़ें काटकर उन्हें कपड़ों पर सिलना पेचवर्क कहलाता है। जिसके लिए शेखावाटी क्षेत्र प्रसिद्ध है।
- कपड़े पर मोम की परत चढ़ाकर जो चित्र बनाये जाते हैं उसे वार्तिक शैली कहा जाता है। जो खंडेला (सीकर) की प्रसिद्ध है। लप्पा, लप्पी, किरण, बांकड़ी, गोखरू आदि गोटे के प्रकार हैं।
कशीदाकारी
- राजस्थान में कशीदाकारी में कमल, हाथी, ऊंट, मोर का अंकन होता है।
- कोटा की मसुरिया, मलमल तथा कोटा डोरिया साड़ियां प्रसिद्ध हैं।
- जयपुर, जोधपुर, अजमेर, उदयपुर का नाम कशीदाकारी में उल्लेखनीय है।
नमदे तथा गलीचे
- टोंक में बनने वाले नमदे प्रसिद्ध हैं।
- बीकानेर जेल में प्रसिद्ध गलीचे बनाए जाते हैं। ऊन से निर्मित वियना व फारसी डिजाइन के गलिचों के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है
हाथी दांत की वस्तुएं
- जयपुर तथा नाथद्वारा में हाथीदांत की वस्तुएं बनाई जाती हैं।
- उदयपुर तथा पाली में हाथी दांत की चूड़ियां बनाई जाती है। जबकि जोधपुर में काली हरी एवं लालधारियों की चुड़िया बनाई जाती है।
पॉटरी
- विभिन्न क्षेत्रों में बर्तनों पर विविध चित्रकारी की जाती है जिसे पॉटरी कहते हैं ।
- ब्लूपॉटरी – जयपुर में चीनी मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी ब्लूपॉटरी कहलाती है ब्लूपॉटरी का जन्म मूलतः पर्शिया (ईरान) में हुआ । इसे जयपुर लाने का श्रेय मानसिंह को है। ब्लू पाटरी का सर्वाधिक विकास सवाई रामसिंह के समय हुआ । ब्लू पाटरी के प्रसिद्ध कलाकार कृपाल सिंह शेखावत थे। जो पद्मश्री से भी सम्मानित हुए।
- कृपाल सिंह शेखावत 1974 में पद्मश्री से सम्मानित किये गए और 2002 में इन्हे शिल्प गुरु की उपाधि दी गयी। कृपाल सिंह शेखावत की मृत्यु 15 फरवरी 2008 को हुई |
- कागजी पॉटरी / डबलकट वर्क पॉटरी – अलवर में बहुत पतले परतदार बर्तन बनाए जाते है। जिन्हें कागजी (डबलकट वर्क पॉटरी) कहा जाता है
- ब्लैक पॉटरी – कोटा की ब्लैक पॉटरी मटकों, फूलदानों पर चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है।
- लाख और सुनहरी पोटरी – बीकानेर
- पोकरण में पॉटरी में लाल व सफेद रंगों का प्रयोग किया जाता है।
- बीकानेर में लाख के रंगों का प्रयोग किया जाता है।
मीनाकारी
- आभूषणों पर मीणा चढ़ाने की कला मीणाकारी कहलाती है।
- जिसकी सर्वोतकृष्ट जयपुर में तैयार की जाती हैं।
- मीनाकारी को मानसिंह लाहौर से जयपुर लाया।
- थेवा कला – प्रतापगढ़ की मीनाकारी को थेवा कला कहा जाता है। जिसे नाथूजी सोनी ने जन्म दिया तथा यह मुख्यत सोनी परिवार से ही सम्बंधित रही। प्रतापगढ़ में सोने पर मीनाकारी की जाती है।
- चांदी पर मीनाकारी – नाथद्वारा में चांदी पर मीनाकारी की जाती है।
- मीनाकारी के प्रसिद्ध कलाकार सरदार कुदरत सिंह हैं जो पद्मश्री से सम्मानित हैं।
- पीतल पर मीनाकारी – यह कार्य मुख्य रूप से जयपुर तथा अलवर में किया जाता है।
- तांबे पर मीनाकारी – भीलवाड़ा|
चमड़े पर हस्तशिल्प
- यह कार्य मुख्य रूप से जयपुर तथा जोधपुर में किया जाता है।
- जोधपुर की मोजड़ी जूतियां जबकि जयपुर की नागरी जुतियां प्रसिद्ध है।
- भीनमाल तथा जालौर में बनने वाली कशीदेवाली जुतियां पूरे मारवाड़ में प्रसिद्ध है।
- बडू (नागौर) में कशीदायुक्त जुतियों की एक परियोजना UNDP के तहत चलाई जा रही है।
- ऊंट की खाल पर नक्काशी उस्ताकला कहलाती है। जिसके प्रसिद्ध कलाकार हिसामुद्दीन उस्ता है।
- बीकानेर में इसके प्रशिक्षण के लिए मुनव्वती कला प्रशिक्षण केन्द्र संचालित हैं।
- ऊस्ता कला के कलाकारों को बीकानेर के महाराजा अनूप सिंह लाहौर से लेकर आये |
- ऊंट की खाल से बनी कुपियां, घी, तेल, इत्र आदि रखने में प्रयुक्त होती है।
कठपुतलियां तथा खिलौने
- यह कार्य मुख्य रूप से उदयपुर में किया जाता है। –
- गणगौर चित्तौड़ के बस्सी में, खिलौन नागौर में तथा पशु पक्षियों के सैट जयपुर में बनाये जाते हैं।
- गलिया कोट का रमकड उद्योग प्रसिद्ध है।
- जिसमें सौफ स्टोन (छीया पत्थर) को तराशकर खिलौन बनाये जाते हैं।
- काष्ठ कलाकृतियों के लिए जेठाना (डुंगरपुर) भी प्रसिद्ध है।
टेरा कोटा
- टेरा कोटा – इसमें मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती है।
- टेरा कोटा के लिए मोलेला (राजसमंद) प्रसिद्ध है।
- टेरकोटा के प्रसिद्ध कलाकार मोहनलाल तथा खेमराज कुमावत है।
कागज बनाने की कला
- हाथ से कागज बनाने का कार्य सांगानेर तथा सवाई माधोपुर में किया जाता है।
मथैरण कला
- मथैरण कला बीकानेर क्षेत्र में मंदिरों तथा पूजा स्थलों को भित्ती चित्रों आदि से सजाया जाता है।
लाख का काम
- लाख का कार्य मुख्य रूप से जयपुर तथा जोधपुर में किया जाता है।
- लाख के आभूषण के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है |
- लाख से बनी चूड़ियां मोकड़ी कहलाती हैं।
फड़ चित्रण
- फड़ चित्रण का कार्य मुख्यत जोशी परिवार द्वारा शाहपुरा ,भीलवाड़ा में किया जाता है |
- फड़ चित्रण के प्रसिद्ध चित्रकार श्री लाल जोशी है |
- फड़ वाचन का कार्य भोपो द्वारा किया जाता है |
- देवनारायण जी की फड़ सबसे लम्बी फड़ है |
- जबकि सबसे लोकप्रिय फड़ पाबूजी की है ऊँटो के देवता भी पाबू जी को कहा जाता है |
राजस्थानी हस्तकला अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- कुन्दन कला – स्वर्णाभूषणों पर पत्थर जड़ने की कला कुन्दन कहलाती है। जिसके लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
- तारकसी – नाथद्वारा में चांदी के बारीक तारों से आभूषण निर्मित करना तारकसी कहलाता है।
- जहर मोहरा नामक रत्न का संबंध जयपुर से है।
- जोधपुर में ठण्डा पानी रखने के लिए जिंक से निर्मित बादला नामक बर्तन होता है।
- जोधपुर के पूनाराम आधे घंटे में पोर्टरेट तैयार करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
- विश्व का सबसे बड़ा चांदी का पात्र सिटी पैलेस, जयपुर में रखा है।
- जयपुर में विश्व की सबसे बड़ी पन्ने की अंतर्राष्ट्रीय मण्डी है।
- राजस्थान में हस्तकला का तीर्थस्थल – जयपुर |
- राजस्थान में शिल्पग्राम उदयपुर में स्थित है |
राजस्थान की प्रमुख हस्तकलाएँ
कार्य | स्थान/जिला |
जाजम प्रिन्ट / आजम प्रिंट | आकोल / (चितौड़गढ़) |
मलीर प्रिंट | बाड़मेर |
अजरक | बालोतरा,बाड़मेर |
मिट्टी का दाबु प्रिंट | बालोतरा,बाड़मेर |
गेहूं का दाबु प्रिंट | बगरू,जयपुर |
मोम का दाबु प्रिंट | सवाई माधोपुर |
हाथीदांत एवं चंदन पर | जयपुर |
गोटा किनारी | खण्डेला, सीकर, भिनाय एवं अजमेर |
गरासियों का फाग (ओढ़नी) | सोजत |
रेजी | चक |
लहरिया एवं पोमचा | जयपुर व शेखावाटी |
पेचवर्क व चटापटी का कार्य | शेखावाटी |
जस्ते की मूर्तियाँ व वस्तुएं | जोधपुर |
दरियाँ | टॉकला (नागौर) |
खुदाई एवं पेटिंग्स गलीचे | जयपुर, बीकानेर |
खेस | चौमूं (जयपुर) व चूरू |
मीनाकारी एवं कुंदन कार्य | जयपुर |
पीतल पर मुरादाबादी नक्काशी का काम | जयपुर व अलवर |
पेपरमेशी (कुट्टी) | जयपुर, उदयपुर |
सूंघनी नसवार | ब्यावर |
मिट्टी के खिलौने | मोलेला (नाथद्वारा), बस्सी (चित्तौड़गढ़) |
लाख की पॉटरी, मोण्डे | बीकानेर |
चुनरी | जोधपुर |
कृषिगत औजार | गजसिंहपुर (गंगानगर) एवं झोटवाड़ा जयपुर |
लकड़ी के झूले | जोधपुर |
रमकड़ा | गलियाकोट |
लकड़ी के खिलौने | उदयपुर, सवाई माधोपुर, जोधपुर |
कुपि | बीकानेर |
मथैरणा कला | बीकानेर |
भटके, सुराही | रामसर ( बीकानेर ) |
ब्ल्यू पॉटरी | जयपुर, नेवटा (सांगानेर) |
पोकरण पॉटरी | पोकरण (जैसलमेर) |
कागजी पॉटरी (पेपरमेसी) | अलवर |
मीरीर का कार्य (दर्पण) | जैसलमेर |
चमड़े की मोजड़ियाँ | जोधपुर, जयपुर, नागौर |
अम्ब्रेला | फालना (पाली) |
टी.वी. | फालना (पाली) |
रेडियो | फालना (पाली) |
सुनहरी टेराकोटा | बीकानेर |
सुनहरी छपाई | उदयपुर |
थेवा कला | प्रतापगढ़ |
रामदेवजी के घोड़े | पोकरण (जैसलमेर) |
बेवाण | बस्सी (चित्तौड़) |
ऊँट की खाल के कलात्मक कुप्पों पर भुनवती का काम (उस्ताकला) | बीकानेर |
सालावास कला | जोधपुर |
स्टील/वुडन फर्नीचर | बीकानेर, चित्तौड़गढ़ |
राजस्थान की प्रमुख हस्तकलाएँ Part 2
कार्य | स्थान/जिला |
पीला-पोमचा | शेखावटी |
लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर | बाड़मेर |
वुडन पेंटेड फर्नीचर | किशनगढ़, अजमेर |
गोटा बनाने की कला | शेखावटी |
सोप स्टोन के तराशे हुए खिलौने | डूंगरपुर |
कागजी टेराकोटा | अलवर |
लाख का काम | जयपुर व जोधपुर |
कठपुतलियाँ | उदयपुर |
कोफ्तगिरी व तहनिशां का काम | जयपुर |
फड़ चित्रण | शाहपुरा (भीलवाड़ा) |
कपड़ों पर मिरर वर्क | जैसलमेर |
बादला एवं मोठड़े | जोधपुर |
लकड़ी की काँवड़ | बस्सी (चित्तौड़गढ़) |
मलमल | मथानियाँ व तनसुख (जोधपुर) |
नांदणे (घाघरे की छपी फड़द) | भीलवाड़ा |
पिछवाइयाँ | नाथद्वारा |
ऊनी बरड़ी, पटू एवं लोई | जैसलमेर |
पाव रजाई | जयपुर |
खेसले | लेटा (जालौर) |
ऊनी कम्बल | जैसलमेर व बीकानेर |
मसूरिया व कोटा डोरिया | कैथून व मांगरोल (कोटा) |
पत्थर की मूर्तियाँ | जयपुर, थानागाजी (अलवर) |
मिनिएचर पेंटिग्स | जोधपुर, जयपुर, किशनगढ़ |
तारकशी के जेवर | नाथद्वारा |
नमदे व दरियाँ | टोंक |
तलवारो का निर्माण | सिरोही |
खेल सामग्री | हनुमानगढ़ |
रामदेव जी के घोड़े | पोकरण |
मामा जी के घोड़े | हरजी गांव,जालौर |
पीतल के बर्तनों पर मुरादाबादी काम | जयपुर |
चमड़े के बटुए | जोधपुर |
लाल पत्थर से बनी मूर्तियां | थानागाजी,अलवर |
संगमरमर की मूर्तियां | जयपुर |
चीड़ का पोमचा | हाड़ौती |
पटोदा का लुगड़ा | शेखावाटी |
शीशम का फर्नीचर | श्रीगंगानगर |
FAQs
Question – रामदेव जी के घोड़े बनाने का कार्य कहां किया जाता है ?
Answer – पोकरण (जैसलमेर)
Question – मिट्टी की मृणमयी मूर्ति बनाने का कार्य कहां किया जाता है ?
Answer – राजसमंद
Question – मथैरणा कला कहां की प्रसिद्ध है ?
Answer – बीकानेर
Question – जस्ते की मूर्तियाँ व वस्तुएं बनाने का कार्य कहां किया जाता है ?
Answer – जोधपुर
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