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चरणदास जी – राजस्थान के लोकसंत | Charandas ji Rajasthan ke Loksant
जन्म – 1703 ईस्वी डेहरा,अलवर में ढूसर कुल में |
(ढूसर – जो लोग पहले ढूसी रेवाडी के निवासी थे तथा बाद में डेहरा आदि स्थानों पर जाकर बस गये थे, उन्हे ढूसर कहा गया ।)
बचपन का नाम – रणजीत
समाधिस्थ या मोक्ष – 1782 ई0 में |
पिताजी – श्री मुरलीधर दास |
माताजी – कूजो देवी |
मुख्य पीठ – दिल्ली |
मेला – बसंत पंचमी को दिल्ली में |
चरणदास जी ने चरणदासी सम्प्रदाय की स्थापना की |
अनुयायियों को 42 उपदेश दिए |
उपदेश की भाषा मेवाती |
चरणदासी सम्प्रदाय के अनुयायी पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं |
अनुयाई स्वयं को श्री कृष्ण की सखी मानकर पूजा पाठ करते हैं |
ऐसा माना जाता है की चरणादास जी भगवान विष्णु के अंशावतार थे ।
इन्होंने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी |
चरण दास जी ने मिश्रित भक्ति के संदेश दिए सगुण और निर्गुण दोनों।
नादिरशाह ने 1739 में भारत पर आक्रमण किया था तब नादिरशाह शाहजहां द्वारा निर्मित तख्ते ताऊस | मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा अपने साथ ले गया था |
प्रमुख ग्रन्थ – चरणदास जी के ग्रंथों में भक्तिसागर , अष्टांगयोगहठयोग, ब्रज चरित, ‘अमरलोक अखण्ड धाम वर्णन’, राजयोग, मंत्रयोग एवं लययोग अर्थात् योगचातुष्ट्य ।
चरणदास जी की प्रमुख शिष्याएं –
दयाबाई – इनकी पुस्तक दयाबोध व विनयमलिका |
सहजोबाई – पुस्तक सहजप्रकाश |
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