नमस्कार प्रिय दोस्तों आपकी इस पोस्ट में हम दादू दयाल 1544-1603 | Dadu Dayal 1544-1603 राजस्थान के प्रमुख लोकसंत से विषय संबंधित दादू दयाल जी के बारे में जानेंगे इस पोस्ट में हम दादू दयाल जी की जीवनी , उनकी प्रमुख रचनाएं एवं दादू पंथ के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर अध्ययन करेंगे |
दादू दयाल का जीवन परिचय
जन्म – दादू दयाल जी का जन्म 1544 में अहमदाबाद गुजरात में हुआ |
मृत्यु – दादू दयाल की मृत्यु 1603 में नरैना/ नारायणा जयपुर में हुई |
माता पिता – बसी बाई और लोदीराम
दादू पंथ से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
अलख दरीबा – दादू दयाल के सत्संग स्थलों को अलख दरीबा कहा जाता है |
दादू दयाल जी के मंदिरों को दादू द्वारा कहा जाता है मंदिर में दादू वाणी की पूजा की जाती है |
उपाधि – दादू दयाल को राजस्थान का कबीर कहा जाता है निर्गुण भक्ति के कारण |
प्रधान पीठ – दादू पंथियों का मुख्य केंद्र दादू खोल – नरैना/ नारायणा जयपुर है |
रचना – दादू रा दूहा , दादू री वाणी , साखी, पद्य, हरडेवानी, अंगवधू दादू दयाल की प्रमुख रचनाएं है |
दादू जी ने अपने साहित्य लेखन में हिन्दी मिश्रित सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग करते थे |
शिष्य – दादू के शिष्य गरीबदास, मिस्किन दास, सुंदरदास, रज्जब दास | दादू जी के 52 मुख्य शिष्य थे ये 52 स्तंम्भ या 52 धाम के कहलाए |
सुंदरदास जी ने गेटोलाव दौसा में शिक्षा ली |
अभिवादन शब्द – सत्यराम
मेला – उनके दो मेले भी लगते हैं। इनमें से एक नराणे में प्रति वर्ष फाल्गुन शुक्ल पंचमी से लेकर एकादशी तक लगा करता है। जिनमें प्रायः सभी स्थानों के दादू पंथी इकट्ठे होते हैं। दूसरा मेला भैराणे में फाल्गुन कृष्ण तीज से फाल्गुन शुक्ल तीज तक चलता है |
बावन स्तंम्भ – संत दादू के 52 स्तंम्भ या 52 धाम के कहलाए |
अन्य मत्वपूर्ण तथ्य
- दादू दयाल जी ने आमेर के राजा भगवानदास के साथ फतेहपुर सीकरी में अकबर से मुलाकात की थी |
- आमेर के राजा मानसिंह के समय दादू दयाल जी ने वाणी नामक ग्रंथ की रचना की | जो 5,000 छंदों के संग्रह में संग्रहीत है |
- दादू जी ने अपने उपदेश ढूंढाड़ी भाषा में दिए थे |
- इन्होंने निपख भक्ति आंदोलन चलाया था |
- दादू पंथ में मृत व्यक्ति को जलाया या दफनाया नहीं जाता है बल्कि एक खुले मैदानों में या जंगलों में फेंक दिया जाता है दादू पंथियों का मानना है कि पशु पक्षियों के आहार के लिए इन्हें जंगलों में फेंक देना चाहिए |
- इनके रहने के स्थान को छावनी कहा जाता है|
- दादू जी का शव भैराणा की पहाड़ी में रखा गया |
- इस स्थान को दादू खोल और दादू पालका कहा जाता है।
दादू पंथ की शाखाएं
- खालसा – नरैना शाखा |
- विरक्त / सिहंग – जो घर छोड़ कर चले गए / घुमक्कड़ |
- उत्तरादे – जो उत्तर की ओर चले गए |
- खाकी – शरीर पर रख मलते हैं |
- नागा – सुंदरदास द्वारा स्थापित |
दादू जी के मुख्य शिष्य
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रज्जब जी
- रज्जब जी सांगानेर के पठान थे|
- दादू जी के उपदेश सुनकर शादी नहीं की थी तथा आजीवन दूल्हे के वेश में रहे थे इसलिए इन्हे दूल्हे के वेश में रहने वाले संत कहा गया|
- रज्जब जी की पुस्तकें – रज्जब वाणी, सर्वगी |
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सुंदरदास जी
- मुख्य केंद्र – गेटोलाव दौसा में है |
- सुंदर दास जी ने नागा शाखा की स्थापना की |
- नागा शाखा के साधुओं ने मराठों के खिलाफ जयपुर के राजा प्रताप सिंह की सहायता की थी|
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