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राजस्थान के लोक नृत्य

राजस्थान के लोक  नृत्य

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राजस्थान के लोक  नृत्य  के प्रमुख विवरण निचे दिया गया है

गैर – होली के अवसर पर भील पुरूषों द्वारा वृताकार रूप मे हाथों में डंडे लेकर किया जाता है।प्रमुखत: मेवाड़ और बाड़मेर में प्रसिद्ध।
नृत्य करने वाले को गैरिये कहते है।
अगिन – जसनाथी सम्प्रदाय का प्रमुख नृत्य। यह नृत्य जलते अंगारों पर किया जाता है। इस नृत्य का उदगम कतरियासर ग्राम बीकानेर में हुआ।
डांडिया – मारवाड़ का प्रमुख नृत्य। यह नृत्य हाथों में डंडे लेकर किया जाता है।
घूमर -यह एक सामाजिक नृत्य है जो नृत्यों का सिरमौर कहलाता है।
यह एक स्त्री नृत्य है जो समूहों में सित्रयों द्वारा किया जाता है।
गींदड़ – यह पुरूषों का सामूहिक नृत्य है जो हाथों में डंडे लेकर किया जाता है। यह षेखावाटी क्षेत्र का प्रमुख नृत्य हैं यह होली के अवसर पर किया जाता हैं  इस नृतय में पुरूष सित्रयों का स्वांग भरते है।
ढोल – जालौर में विवाह के अवसर पर परूुषों द्वारा मुंह में तलवार रखकर किया जाता है। इस नृत्य में ढोल का प्रयोग किया जाता है।
तेरहताली – कामड़ जाति के पुरूष व महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष गीत गाते है। यह नृत्य रामदेव जी की अराधना में भजन गाते हुये किया जाता है। इस नृत्य मे सित्रयां हाथ पैर में मंझीरें बांधती है।
भवार्इ – यह नृत्य भवार्इ जाति द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में स्त्री व पुरूष दोनों भाग लेते है। इस नृत्य का प्रमुख क्षेत्र उदयपुर संभाग है। इसमें नर्तक सिर पर सात आठ मटके रखकर, जमीन पर मुंह से रूमाल उठाना, थाली के किनारों प नृत्य ,तलवार की धार पर नृत्य करते है।
बम रसिया – होली के अवसर पर पुरूषाेें द्वारा किया जाता है। इसमें नगाड़ों का प्रयोग होता है।प्रमुख क्षेत्र – अलवर, भरतपुर
डांग नृत्य – नाथद्वारा में होली के अवसर पर स्त्री पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
घुडला नृत्य – सित्रयों द्वारा सिर पर छिद्र युक्त मटका रखकर जिसमें जलता हुआ दीपक रखा जाता है, रखकर किया जाता है  प्रमुख क्षेत्र – मारवाड़।
गवरी नृत्य – भीलों का धार्मिक नृत्य जो नृत्य नाटिक के रूप मे मंचित किया जाता है। प्रमुख क्षेत्र – उदयपुर सम्भाग।
वालर नृत्य – गरासिया जाति में स्त्री – पुरूषों द्वारा अद्र्धवृताकार रूप में अत्यंत धीमी गति से किय जाने वाला नृत्य।
इसमें वाध यंत्र का प्रयोग नहीं होता । इसमें दो अद्र्धवृत होते है। अन्दर के अद्र्धवृत में सित्रयां तथा बाहर के अद्र्धवृत में पुरूष होते है।
मांदल नृत्य – गरासिया सित्रयों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
षंकरिया – यह एक पेम्र कथा पर आधारित नृत्य है। यह स्त्री परूुषों द्वारा युगल रूप में किया जाता है
यह कालबेलियों द्वारा किया जाता है।
पणिहारी – कालबेलियों का युगल नृत्य जो पणिहारी गीत गाते हुये किया जाता है।
इडोणी – कालबेलियों का युगल नृत्य जो वृताकार रूप में किया जाता है। प्रमुख यंत्र पूंगी, खंजरी।
बागडि़यां – कालबेलियां सित्रयां द्वारा भीख मांगते हुये चंग का प्रयोग करते हुये किया जाता है।
कच्छी घोड़ी – यह एक वीर नृत्य हैं
यह पुरूषों द्वारा किया जाता है।
इसमें नर्तक बांस की नकली घोड़ी को अपने कमर से बांधकर, तलवार हाथ में लेकर लड़ार्इ का दृष्य प्रस्तुत
करते हैं ।प्रमुख क्षेत्र – षेखावटी
गरबा नृत्य – नवरात्रि में महिलाओं द्वारा किया जाता है। प्रमुख क्षेत्र – डूंगरपुर , बांसवाड़ा
चकरी नृत्य – कंजर जाति की लड़कियों द्वारा किया जाने वाला चक्राकार नृत्य प्रमुख क्ष्सेत्र हाड़ोती।
मोरिया नृत्य – गरासिया पुरूषों द्वारा विवाह पर किया जाने वाला नृत्य।
गौर नृत्य – गरासिया स्त्री पुरूषों द्वारा गागौर के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य ।
जवारा नृत्य – होली के अवसर पर गरासिया स्त्री पुरूषों द्वारा किया जाता है।
द्विचकारी नृत्य – विवाह के अवसर पर भीलों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।

 

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