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राजस्थान के लोकसंत – Rajasthan ke Loksant

Rajasthan ke Loksant

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राजस्थान के लोकसंत – Rajasthan ke Loksant

लोकसंत – वे महापुरष या समाज सुधारक थे जिन्होंने लोगो में भक्ति और भगवान के प्रति आस्था जागृत की | समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए लोगो में जन जाग्रति का कार्य किया है |

जाम्भो जी

जाम्भो जी का जीवन परिचय | Jambho ji  introduction

जाम्भोजी का जन्म एक हिन्दू पंवार वंशीय राजपूत परिवार में हुआ |

बिश्नोई धर्म गुरु जांभेश्वर जी से सम्बंधित महवपूर्ण तथ्य

श्री गुरु जम्बेश्वर जी द्वारा बताये गए 29 नियम | 29 rules given by Shri Guru Jambeshwar Ji

  1. हरे पेड़ पौधों को नहीं काटा जाना चाहिए |

        नोट :-

  1. जीवों के प्रति दया का भाव रखना।
  2. प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना।
  3. 30 दिन जनन सूतक मानना।
  4. दिन रजस्वता स्री को गृह कार्यों से मुक्त रखना।
  5. शील का पालन करना।
  6. काम, क्रोध, मोह एवं लोभ का नाश करना।
  7. रसोई अपने हाध से बनाना।
  8. परोपकारी पशुओं की रक्षा करना।
  9. अमल का सेवन नही करना।
  10. तम्बाकू का सेवन नही करना।
  11. भांग का सेवन नही करना।
  12. शराब का सेवन नही करना।
  13. बैल को बधिया नहीं करवाना।
  14. नील का त्याग करना।
  15. संतोष का धारण करना।
  16. बाहरी एवं आन्तरिक शुद्धता एवं पवित्रता को बनाये रखना।
  17. तीन समय संध्या उपासना करना।
  18. संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना।
  19. निष्ठा एवं प्रेमपूर्वक हवन करना।
  20. पानी, ईंधन व दूध को छान-बीन कर प्रयोग में लेना।
  21. वाणी का संयम करना।
  22. दया एवं क्षमा को धारण करना।
  23. चोरी नही करनी।
  24. निंदा नही करनी।
  25. झूठ नही बोलना।
  26. वाद विवाद का त्याग करना।
  27. अमावश्या के दिन व्रत करना।
  28. विष्णु का भजन करना।

दादू दयाल 

दादू दयाल का जीवन परिचय

सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

बावन स्तंम्भ  – संत दादू के 52 स्तंम्भ  या 52 धाम के कहलाए |

अन्य मत्वपूर्ण तथ्य

दादू पंथ की शाखाएं

  1. खालसा नरैना शाखा |
  2. विरक्त / सिहंग जो घर छोड़ कर चले गए  घुमक्कड़ |
  3. उत्तरादे जो उत्तर की ओर चले गए |
  4. खाकी शरीर पर रख मलते हैं |
  5. नागा सुंदरदास द्वारा स्थापित |

दादू जी के  मुख्य शिष्य

  1. रज्जब जी

  1. सुंदरदास जी   

संत लालदास जी

 

संत लालदास जी का जीवन परिचय

जन्म  –   1540 ई. धोलीदूब ,अलवर में हुआ |
माता-पिता का नाम समदा -चांदमल  |
पत्नी का नाम  – मोगरी/भोगरी |
मृत्यु –  नागला जहाज,भरतपुर |
समाधि  – शेरपुर,अलवर |
मुख्य केंद्र / प्रधान पीठ  – नागला जहाज,भरतपुर |
गुरु –    गद्दन चिश्ती (तिजारा ,अलवर ) |
मेला    अश्विन एकादशी व माघ पूर्णिमा |
लालदासी संप्रदाय के संस्थापक | 
मेव जाति के लकड़हारे थे | 

निर्गुण भक्ति पर बल दिया | |
उपदेश भाषा – मेवाती भाषा |
मेवात क्षेत्र (अलवर,भरतपुर) में अधिक प्रभाव |
मुसलमान होते हुए भी हिंदू देवी देवताओं की पूजा|
अलवर में मेव जाति में sant lal das ji  ki सर्वाधिक मान्यता

संत पीपाजी

संत पीपाजी महाराज का जीवन परिचय

राजस्थान में भक्ति आंदोलन के जनक |
जन्म – सन् 1359 ई. चैत्र पूर्णिमा गागरोन दुर्ग में चैहानवंशी खीची परिवार में |
निर्वाण – सन् 1420 ई
निर्वाण स्थल – गागरोण
पिता – गागरोण के शासक कड़वा राम
माता – लक्ष्मी मती
बचपन का नाम – प्रताप सिंह
अन्य नाम – पीपा बैरागी
गुरु – रामानंद जी
मुख्य मंदिर या स्थल – समदड़ी बाड़मेर
मंदिर – समदड़ी बाड़मेर
गुफा – टोडा टोंक
पुस्तक – चिंतावानी जोग गुटका
छतरी – गागरोण झालावाड़ में है|

मेला – समदड़ी मंदिर में प्रत्येक पूर्णिमा को |

संत पीपा – राजस्थान के लोकसंत से सम्बंधित महत्व पूर्ण तथ्य

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राजस्थान के साहित्य की प्रमुख रचनाएँ

संत पीपा जी की रचना गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित

गुरु नानक देव जी ने संत पीपा जी की रचना उनके पोते अनंतदास के पास से टोडा में ही प्राप्त की। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित ‘परचई’ के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में जगह दी

गुरु ग्रंथ साहिब लिखित दोहे है –

जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजे सो पावै॥ – (गुरु ग्रंथ साहिब, पन्ना ६८५)
(जो प्रभु पूरे ब्रह्माँड में मौजूद है, वह मनुष्य के हृदय में भी विद्यमान है।)

पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥२॥ – (गुरु ग्रंथ साहिब, पन्ना ६८५)
(पीपा परम तत्व की आराधना करता है, जिसके दर्शन पूर्ण सतिगुरु द्वारा किये जाते हैं।)

संत पीपाजी पैनोरमा, झालावाड़

2015-16 बजट में संत पीपाजी का पैनोरमा झालावाड़ जिले में बनाने की घोषणा सरकार द्वारा की गयी | संत पीपाजी पैनोरमा के लिए 298.62 लाख रूपये के बजट की घोषणा की गयी |

चरणदास जी

चरणदास जी का जीवन परिचय

जन्म1703 ईस्वी डेहरा,अलवर में ढूसर कुल में |
(ढूसर – जो लोग पहले ढूसी रेवाडी के निवासी थे तथा बाद में डेहरा आदि स्थानों पर जाकर बस गये थे, उन्हे ढूसर कहा गया ।)
बचपन का नाम – रणजीत
समाधिस्थ या मोक्ष – 1782 ई0 में |
पिताजी – श्री मुरलीधर दास |
माताजी – कूजो देवी |
मुख्य पीठ – दिल्ली |
मेला – बसंत पंचमी को दिल्ली में |
चरणदास जी ने चरणदासी सम्प्रदाय की स्थापना की |
अनुयायियों को 42 उपदेश दिए |
उपदेश की भाषा मेवाती |
चरणदासी सम्प्रदाय के अनुयायी पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं |
अनुयाई स्वयं को श्री कृष्ण की सखी मानकर पूजा पाठ करते हैं |
ऐसा माना जाता है की चरणादास जी भगवान विष्णु के अंशावतार थे ।
इन्होंने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी |
चरण दास जी ने मिश्रित भक्ति के संदेश दिए सगुण और निर्गुण दोनों।
नादिरशाह ने 1739 में भारत पर आक्रमण किया था तब नादिरशाह शाहजहां द्वारा निर्मित तख्ते ताऊस | मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा अपने साथ ले गया था |

प्रमुख ग्रन्थ :-

चरणदास जी के ग्रंथों में भक्तिसागर , अष्टांगयोगहठयोग, ब्रज चरित, ‘अमरलोक अखण्ड धाम वर्णन’, राजयोग, मंत्रयोग एवं लययोग अर्थात् योगचातुष्ट्य ।

चरणदास जी की प्रमुख शिष्याएं –

दयाबाई – इनकी पुस्तक दयाबोध व विनयमलिका |
सहजोबाई – पुस्तक सहजप्रकाश |

संत धन्ना जी

संत धन्ना जी का जीवन परिचय

जन्म – सन् 1415 ई में हरचतवाल जाट परिवार में जन्म हुआ था |
जन्म स्थान :- धुवन/धुआंकला, टोंक
पिता – रामेश्वर जी
माता – गंगा बाई गड़वाल
गुरु – रामानंद जी
इन्होंने कृष्ण की मूर्ति को बलपूर्वक भोजन कराया |
माना जाता है की – धन्ना जाट जी शालग्राम जी के भक्त थे।
मुख्य मंदिर – बोरानाडा जोधपुर |
धन्ना जी के उपदेश धन्ना जी की आरती नामक ग्रंथ में संकलित है जिसके चार पद गुरु ग्रंथ साहिब में लिखे हुए हैं |
राजस्थान में भक्ति आंदोलन की शुरुआत की थी |

धन्ना भगत पैनोरमा – धुंवाकला , टोंक

2016-17 बजट में संत धन्ना का पैनोरमा धुंवाकला , टोंक जिले में बनाने की घोषणा सरकार द्वारा की गयी | पेनोरमा के अंदर उनके जीवन की विभिन घटनाओं को दर्शाया हुआ है | तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार द्वारा धन्ना भगत पैनोरमा के लिए 140.04 लाख रूपये के बजट की घोषणा की गयी |

हरिदास जी

हरिदास जी का जीवन परिचय

मूल नाम – हरि सिंह सांखला
जन्म – कपड़ोद डिडवाना के निकट नागौर
मुख्य केंद्र – गाढा बास, डीडवाना नागौर ( यहाँ हरिदास जी निरंजनी ने समाधि ली थी )
मेला – प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल एकम् से फाल्गुन शुक्ल द्वादशी तक
उपाधि – हरिदास जी को ‘कलियुग ‘का वाल्मिकी’ कहा जाता है |
हरिदास जी पहले डाकू थे तत्पश्चात सन्यासी बन गए |
इन्होंने सगुण और निर्गुण भक्ति ओं का संदेश दिया था |
हरिदास जी निरंजनी संप्रदाय के प्रवर्तक हैं |

हरिदास जी द्वारा रचित पुस्तकें या ग्रंथ –

  1. मंत्रराज प्रकाश
  2. हरिपुर जी की वाणी
  3. हरि पुरुष जी के गुदड़ी
  4. भक्त विरदावली
  5. भरथरी संवाद साखी

राजाराम जी

जन्म – विक्रम संवत 1939 चैत्र सुदी नवमी को शिकारपुरा जोधपुर (Updated)
पिता – हरिंगराम जी
माता – मोती बाई जी
प्रधान पीठ – शिकारपुरा जोधपुर
राजाराम जी सम्प्रदाय मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है।
पटेल जाति के मुख्य संत हैं |
राजाराम जी ने भी पर्यावरण सरक्षण का उपदेश दिया था |

मीराबाई का जीवन परिचय

जन्म – 1503 ई. (Source NCRT book – Read Here) में ‘कुड़की’ गांव (मेड़ता) में
बचपन का नाम / अन्य नाम / मूलनाम – पेमल
पिता – रतन सिंह
माता – वीर कँवर
पति – भोजराज
मीरा का विवाह – 1516 ई. में मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ |
गुरु – रैदास / रविदास जी
रैदास जी की छतरी चित्तौड़गढ़ किले के परिसर में मीरा मंदिर के पास बनी हुई है |
निधन / मोक्ष – द्वारिका गुजरात – 1546 ई (Source NCRT book – Read Here) .
उपाधि – संत शिरोमणि , राजस्थान की राधा
सम्प्रदाय – दासी / मीरादासी सम्प्रदाय

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मीराबाई की पुस्तकें तथा रचनाएं

  1. रुक्मणी मंगल
  2. पदावली
  3. सत्यभाभा जी नू रूसणो
  4. गीत गोविंद / राग गोविन्द
  5. नरसी जी रो मायरो (रतन खाती के सहयोग द्वारा संकलित)

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