अभिवृद्धि और विकास Accretion and development Psychology
Download psychology important Topic In Hindi Pdf Click Here
Read psychology important books and writers
Online Psychology Test in hindi
मनोविज्ञान के सभी टॉपिक हिंदी में पढने के लिए यहाँ क्लिक करे – Click Here For Read psychology All Topic in Hindi
अभिवृद्धि एवं विकास
*अभिवृद्धि और विकास की प्रक्रिया है गर्भाधान के समय से आरंभ हो जाती है |
* बाल विकास गर्भावस्था से किशोरावस्था तक
* विकास एक दिशा की ओर जाने वाला मार्ग है – टायलर
*विकास की गति सामान्य से विशिष्ट की ओर जाती है |
* शैशवाकाल के विकास अधिक तीव्र होता है |
* कोशिकाओं की गुणात्मक बुद्धि “अभिवृद्धि” कहलाती है |
* बालक को अपने माता-पिता से लगभग 4600 गुण प्राप्त होते हैं |
वृद्धि एवं विकास में अंतर
वृद्धि विकास
*केवल शारीरिक परिवर्तन संपूर्ण पक्षो के परिवर्तनों का संयुक्त रूप
* विशेष आयु तक चलने वाली प्रक्रिया आजीवन चलने वाली प्रक्रिया
* वृद्धि विकास का एक चरण विकास में वृद्धि सम्मिलित
* परिवर्तनों को देखा वह नापा जा सकता है | केवल अनुभव कर सकते हैं |
* यह भौतिक विकास है यह गुणात्मक विकास है |
मानव विकास को प्रभावित करने वाले कारक –
वंशानुक्र्म , वातावरण , बुद्धि , लिंग , अंतः स्त्रावी ग्रंथियां , जन्म क्रम , भयंकर रोग एवं चोट , पोषाहार , शुद्ध वायु एवं प्रकाश , प्रजाति , नियमित दिनचर्या , प्रेम
अभिवृद्धि एवं विकास के सिद्धांत –
- निरंतर विकास का सिद्धांत
बालक का विकास निरंतर होता रहता है कभी तीव्र कभी मंद | आकस्मिक होता है |
(2) विकास के विभिन्न गति का सिद्धांत
विकास विभिन्न अवस्थाओं ( शैश्व , बाल्य , किशोरा ) में भिन्न-भिन्न गति से होता है |
(3 )विकास क्रम का सिद्धांत
बालक का गामक और भाषा संबंधी विकास एक निश्चित क्रम में होता है |
(4)विकास दिशा का सिद्धांत – ( मस्तकोथमुखी सिद्धांत )
बालक का विकाश सिर से पैर की दिशा में होता है |
(5) एकीकरण का सिद्धांत – बालक पहले संपूर्ण अंग को फिर अंग के भागों को चलाना सीखता है |
(6) परस्पर संबंध का सिद्धांत – बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसका गामक व भाषा संबंधी
विकास भी होता है |
(7) व्यक्तिक विभिन्नताओं का सिद्धांत –
एक ही आयु के बालक – बालिकाओं , दो बालको , दो बालिकाओ के शारीरिक , मानसिक व सामाजिक विकास व्यक्ति विभिन्नताओं की उपस्थिति सपष्ट दृष्टिगोचर होती है |
( 8) समान प्रतिमान का सिद्धांत –
“ प्रत्येक जाति चाहे वह पशु जाती हो या मानव जाति अपनी जाति के अनुरूप विकास के प्रतिमान का अनुसरण करती है |” – हरलॉक
(9 ) सामान्य व विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धांत –
बालक पहले अपने पूर्ण शरीर का संचालन करता है बाद में किसी अंग का | पहले शब्द चिड़िया बाद में – तोता , कौआ , कबूतर आदि |
(10) वंशानुक्रम व वातावरण की अंतः क्रियाओं का सिद्धांत
बालक का विकास में केवल वंशानुक्रम के कारण और न केवल वातावरण के कारण बल्कि दोनों की अंतः क्रिया के कारण होता है |
(11) संचिता और पुनरावृति का सिद्धांत
* विकास अनुभवों का कुल योग होता है |
* विकास के प्रत्येक अवस्था की विशेषता की आवर्ती दूसरी अवस्था में भी देखी जा सकती है |
(12) परिपक्वता और अधिगम का सिद्धांत
परिपक्वता वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करती है और बदले में परिपक्वता से प्रभावित वृद्धि और विकास अधिगम क्रिया को प्रभावित करते हैं |
(13) समानता विकास की प्रचलित अवस्थाएं –
शैशावस्था – जन्म से 5 वर्ष
बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष
किशोरावस्था – 12 से 19 वर्ष
प्रौढ़ावस्था – 19 वर्ष से अधिक
हरलॉक के अनुसार –
गर्भाधान – गर्भ धारण से जन्म तक
शैशव -जन्म से 2 सप्ताह
शैशव काल – 2 से 11
किशोरावस्था – 11 से 21
* सामान्य परिस्थिति में गर्भावस्था की अवधि 270 से 280 दिन |
* भ्रूण के शरीर की तुलना में सिर का विकास पहले होता है वह बड़ा होता है |
* जन्म के समय शिशु की लंबाई लगभग 20 इंच और भार 5 -8 पाउंड होता है |
* जन्म के कुछ समय बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में क्या स्थान है – एडलर