बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं Different Stages of Child Development

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं Different Stages of Child Development

प्रिय पाठको अगर आपको हमरा प्रयास अच्छा लगा या आप कोई सुझाव देना चाहते है तो यहाँ क्लिक करके कमेंट अवस्य करे –  click Here

मनोविज्ञान के सभी टॉपिक हिंदी में पढने के लिए यहाँ क्लिक करे – Click Here For Read psychology All Topic in Hindi

hindi varn vichar हिंदी वर्ण विचार

राजस्थान का परिचय About Rajasthan

(1)शैशवावस्था

  *जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल |

*  जन्म के 15 दिन बाद त्वचा का रंग स्थाई होने लगता है |

* यह मानव विकास की दूसरी अवस्था  है | पहली –  गर्भकाल

* प्रथम 3 वर्षों में शिशु का विकास तीव्र गति से होता है |

*आतंम प्रेम की भावना

* जन्म के समय उत्तेजना के अलावा कोई  संवेग  नहीं होता (उत्तेजना अनुभव करता है )

* 2 वर्ष की आयु तक सभी संवेग (मुख्यत: –   4 भय, क्रोध, प्रेम, पीड़ा)

* वैलेंटाइन ने इसे सीखने का आदर्श काल  कहा है |

* शिशुओं में काम – प्रवृत्ति की प्रबलता पाई जाती हैं  – सिगमंड फ्रायड

* सामाजिकता का विकास शैशवास्था के अंतिम चरण में |

* वचन के अनुसार बालक के सर्वप्रथम  एवम प्रेम के संवेगों का विकास होता है |

बीसवीं शताब्दी ` बाल की  शताब्दी ` हैं |                                                               क्रो क्रो

  “बालक के हाथ पैर और नेत्र उसे प्रारंभिक शिक्षक हैं “                                            रूसो    

पहले हम अपनी आदतों का निर्माण करते हैं फिर आदते हमारा निर्माण करती है          — ड्राइडैन   

जीवन के प्रथम 2 वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है                 स्टैंग

प्रिय पाठको अगर आपको हमरा प्रयास अच्छा लगा या आप कोई सुझाव देना चाहते है तो यहाँ क्लिक करके कमेंट अवस्य करे –  click Here

See also  psychology Important Books And Writers

(2)बाल्यावस्था –   जीवन का निर्माणकारी व अनोखा काल  (कोल व ब्रूस ने ) |

  • वैचारिक क्रिया अवस्था
  • प्रारम्भिक विधालय की आयु
  • समूह की आयु
  • रोस ने छद्म परिपक्वता की अवस्था कहा हैं व मिथ्या परिपक्वता |
  • मैं कौशलों  क्षमताओं के विकास की दृष्टि से स्वर्णिम काल |
  • बालकों में बिना किसी उद्देश्य के घूमने की प्रवृत्ति पाई जाती है |
  • काल्पनिक जगत को त्यागकर वास्तविक जगत में प्रवेश |
  • व्यवहार बहिर्मुखी
  • रचनात्मक कार्यों और संग्रहण  करने में रुचि
  • सामूहिक खेलों में रुचि
  • किल पैट्रिक  ने   प्रतिद्वंद्वात्मक समाजिकरण का काल कहा है |
  • काम प्रवृत्ति की न्यूनता
  • अंतिम अवस्था में कल्पनाशक्ति एवं अमूर्त चिंतन की शुरुआत |

 

(3) किशोरावस्था

              “ किशोरावस्था वह समय है जिसमें विचारशील व्यक्ति   बाल्यवस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता है”                                                                                         जरशील्ड

किशोरावस्था ,  बड़े संघर्ष ,  तनाव तूफान की अवस्था है “                      स्टेनले  हॉल

  • इसे टीनएज भी कहते हैं
  • सबसे अधिक महत्वपूर्ण व संवेदनशील अवस्था |
  • लड़कियों का शारीरिक विकास से लड़कों की अपेक्षा अधिक |
  • विषमलिंगीय  समूह बनाते हैं |
  • दल के प्रति निष्ठा व त्याग की भावना |
  • भावी जीवन के संबंध में चिंतन |
  • दिवा सपनों का बाहुल्य |
  • स्वतंत्रता व  विद्रोह की भावना का विकास |
  • इसे समस्याओं की अवस्था भी कहते हैं |
  • किशोरावस्था की प्रारंभिक अवस्था कौतूहल जिज्ञासा व  चंचलता की अवस्था है |
  • स्थिरता तथा समायोजन का  अभाव |

 11 या 12 वर्ष की आयु में बालक की नसों में जवार उठना आरंभ हो जाता है          हैडो कमेटी

–  किशोरावस्था शैशवावस्था की पुनरावर्ती है |                                                       —  रोस

 हम जो कुछ भी उसका  9/10  भाग जन्मजात वंशानुक्रम है तथा केवल 1/10  भाग ही अर्जित  होता है |

See also  संज्ञा Noun

                                                                                                                                  —- पार्कर

मानसिक  तथा शारीरिक स्थिरता बाल्यावस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है |      — रोस

मनुष्य को जो कुछ भी बना होता है  वह 4- 5 वर्षो में बन जाता है                          फ़्रायड       

बाल विकास को सबसे अधिक प्रेरित करने वाला   धारक – खेल मैदान

क्रोध संवेग का विकास 8 से 9 वर्ष की आयु में होता है |

– क्रोध पर नियंत्रण करम परंतु किशोरावस्था में  क्रोध पर नियंत्रण बढ़  जाता है |

-बालिकाओं में क्रोध प्रदर्शन की प्रवर्ती |

 

 वृद्धि तथा विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट करते अन्य सिद्धांत

  • मनो लैंगिक विकास सिद्धांत – फ़्रायड
  • संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत –  पियाजे
  • मनोसामाजिक विकास सिद्धांत   –  इरिक्सन
  • भाषा- विकास सिद्धांत – कोहलबर्ग
  • जीन प्याजे ने व्यक्ति को जन्म से ही क्रियाशील तथा सूचना प्रक्रमनित  प्राणी माना |
  • जैरोम ब्रूनर ज्ञानात्मक विकास को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया

             क्रियात्मक ,  प्रतिबिबात्मक ,  संकेतात्मक

प्रिय पाठको अगर आपको हमरा प्रयास अच्छा लगा या आप कोई सुझाव देना चाहते है तो यहाँ क्लिक करके कमेंट अवस्य करे –  click Here

मनोविज्ञान के सभी टॉपिक हिंदी में पढने के लिए यहाँ क्लिक करे – Click Here For Read psychology All Topic in Hindi

hindi varn vichar हिंदी वर्ण विचार

राजस्थान का परिचय About Rajasthan

Leave a Comment

You cannot copy content of this page

Scroll to Top