hindi varn vichar हिंदी वर्ण विचार
भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है ध्वनि के लिपिबद्ध रूप को वर्ण कहते हैं
वर्ण दो प्रकार के होते हैं – 1 स्वर 2 व्यंजन
स्वर – स्वर एक स्वतंत्र ध्वनि है मुख से उच्चारित होने वाली वह ध्वनि जिसको उच्चरित होने के लिए किसी अन्य वर्णों की सहायता ना लेनी पड़े स्वर कहलाते हैं
हिंदी में स्वर 11 होते हैं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ ओ औ
'अं' और 'अः' को स्वर में नहीं गिना जाता है। इन्हें अयोगवाह ध्वनियाँ कहते हैं।
मात्रा स्वरों की श्रेणी में आती है
स्वरों के प्रकार
मूल/ लघु / हास्व स्वर
2. दीर्घ स्वर
3. प्लुत स्वर
4. संयुक्त स्वर
1 मूल/ लघु / हास्व स्वर – वे स्वर जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की अपेक्षा कम समय लगता हो उन्हें मूल स्वर कहते हैं
उदाहरण – अ, इ,उ , ऋ
2 दीर्घ स्वर – वे स्वर जिनके के उच्चारण में मूल स्वरों की अपेक्षा दुगना समय लगे उन्हें दीर्घ स्वर कहते है
उदाहरण – आ,ई,ऊ,ए ,ऐ,ओ,औ,
3 प्लुत स्वर – वे स्वर जिनके के उच्चारण में मूल स्वरों की अपेक्षा तीगुना गुना समय लगे उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं
उदाहरण – ॐ
4 संयुक्त स्वर – वे स्वर जिनका निर्माण दो भिन्न-भिन्न जातियों के स्वरों से होता है उन्हें संयुक्त स्वर कहते हैं
उदाहरण – ए ,ऐ,ओ,औ
व्यंजन – व्यंजन एक अस्वतंत्र ध्वनि होती है मुख से उच्चारित होने वाली वह ध्वनि जिसको उच्चरित होने के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता लेनी पड़ती है व स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते हैं
व्यंजन 33 होते हैं
क | ख. | ग | घ | ड. |
च | छ | ज | झ | ञ |
ट | ठ | ड | ढ | ण |
त | थ | द | ध | न |
प | फ | ब | भ | म |
य | र | ल | व | |
श | ष | स | ह |
सयुक्त व्यंजन – > सयुक्त व्यंजन तिन होते है
क्ष = क्+ष
ज्ञ =ज्+ञ
त्र = त्+र
नोट – ष,ञ,र आधे है ओर इनमे ‘ अ ’ जुड़ा हुआ है
हिंदी में व्यंजन वर्गों की संख्या 5 होती है
क वर्ग- क् ख् ग् घ् ङ्
च वर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
ट वर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ़्)
त वर्ग- त् थ् द् ध् न्
प वर्ग- प् फ् ब् भ् म्
वर्ग की शर्तें
प्रत्येक वर्ग में 5 अक्षर होने चाहिए
प्रत्येक वर्ग के प्रथम चार अक्षरों का उच्चारण स्थान एक ही होना चाहिए
प्रत्येक वर्ग का अंतिम वर्ण अनुनासिक होता है
उच्चारण स्थान के आधार पर वर्णों का वर्गीकरण
वर्ण | उच्चारण | श्रेणी |
क वर्ग ,अ, आ, ह्, विसर्ग (:) | कंठ और जीभ का निचला भाग | कंठ्य |
च वर्ग इ, ई, य्, श | तालु और जीभ | तालव्य |
ट वर्ग ,ऋ र् ष् | मूर्धा और जीभ | मूर्धन्य |
त वर्ग ल् स् | दाँत और जीभ | दंत्य |
प वर्ग ,उ ऊ | दोनों होंठ | ओष्ठ्य |
अं,ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् | नासिका | अनुनासिक |
ए ऐ | कंठ तालु और जीभ | कंठतालव्य |
ओ औ | कंठ जीभ और होंठ | कंठोष्ठ्य |
व,फ | दाँत जीभ और होंठ | दंतोष्ठ्य |
स्पर्शी व्यंजन –
जिन वर्णों का उच्चारण कंठ ,तालु ,मूर्धा, दंत और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से होता है उन्हें स्पर्शी व्यंजन कहते हैं
क ख ग घ ड.
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
नोट –
ड् ढ् से ड़ ढ़ की उत्पति हुई है
ड़ ढ़- का प्रयोग शब्दों के बिच में होता है
ड् ढ् – का प्रयोग शब्दों के आरम्भ में होता है
अन्तस्थ व्यंजन – य् र् ल् व्
ऊष्म व्यंजन – श् ष् स् ह्
लुंठित व्यंजन/प्रकम्पित व्यंजन – र
पार्श्विक व्यंजन – ल
उत्क्षिप्त व्यंजन – ड़ ढ़
अल्पप्राण – वे वर्ण जिनको बोलने में अल्पप्राण लगे अल्प प्राण कहलाते हैं
प्रत्येक वर्ग का पहला तीसरा पांचवा वर्ण
सभी अंतस्थ वर्ण य् र् ल् व्
सभी स्वर अल्पप्राण वर्ण है
महाप्राण – वे वर्ण जिनको बोलने में महाप्राण की आवश्यकता हो उन्हें महाप्राण कहते हैं
प्रत्येक वर्ग का 2,4 वर्ण
सभी ऊष्म व्यंजन महाप्राण वर्ण है (श् ष् स् ह्)
घोष/सघोष – प्रत्येक वर्ग का 3,4,5 वां वर्ण और य,र,ल,व,ह और सभी स्वर घोष वर्ण है
अघोष – प्रत्येक वर्ग का 1,2 वर्ण तथा श् ष् स् अघोष वर्ण है
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